मैंने बहुत कोशिश की अपनी कल्पना में समझने की कि कोई फोन किस तरह का हो सकता है, जिसमें इतने पैसे लगते हों। बॉडी सोने की हो और उसमे हीरे-जवाहरात जड़े हों तब भी सर्किट-चिप तो पारम्परिक ही होगा। फिर बाकी पैसे कहाँ खपाए जाएंगे?
एक किस्सा याद आ रहा है। एक भिखारी के हाथ में सूखी रोटी थी। वह रोटी तोड़कर दूसरे हाथ में लगाता और खाता जाता था, जबकि दूसरा हाथ खाली था। एक इंसान को जिज्ञासा हुई। पूछा, ‘ऐसा क्यों करते हो?’ उसने जवाब दिया कि मैं नमक की कल्पना करता हूँ। व्यक्ति ने कहा कि भले आदमी कल्पना ही कर रहे हो तो मक्खन की क्यों नहीं करते। उसने जवाब दिया, ‘मेरी जितनी औकात है, मैं कल्पना भी तो उतनी ही कर सकता हूँ न!’
सनद रहे कि इस फोन की मालकिन को हमारे-आपके पैसों से सरकारी सुरक्षा मिली हुई है। इनके सैयां कोतवाल के जिगरी हैं!
सच कहाँ आपने Dinesh Choudhary जी हमारी तो कल्पना भी वहाँ तक नहीं पहुँचती । एक बार इनही के बारे में कही पढ़ा की इनकी सुबह की चाय का एक प्याला तीन लाख का पड़ता है । बड़ी देर तक सोचती रही सोने चाँदी के बर्तनों के अलावा उस चाय में ऐसा क्या होगा जो उसकी क़ीमत तीन लाख हो गयी । एक तरफ़ जहाँ 40% आबादी भुखमरी की शिकार है और दूसरी तरफ़ तीन लाख की एक चाय….ऐसे ही नहीं महान है अपना देश ।