खावला बिन्त अल अज़वर 7वी शताब्दी की सबसे महान महिला योद्धा

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जोन ऑफ़ आर्क, हुआ मुलान और क्वीन बौदिच्चा। शायद, जब भी कोई आपसे प्रसिद्ध ऐतिहासिक महिला योद्धाओं के बारे में सवाल करता होगा तब आपके दिमाग में यही नाम आते होंगे। हालाँकि, इस फेहरिस्त में एक नाम और है, जो ज़्यादा मशहूर नहीं है लेकिन बेहद ख़ास महिला योद्धा रही हैं: खावला बिन्त अल अज़वर।

हम मैं से ज़्यादातर ने इस्लामी इतिहास में मज़बूत और बहादुर महिलाओं के जीवन से सम्बंधित कहानियां सुनी हैं। हम सभी ने इन महिलाओं की समझदारी, वफ़ादारी, ताक़त और ख़ूबसूरती के किस्से सुने हैं। लेकिन मार्वल और डीसी कॉमिक्स के ज़माने में बड़े होने की वजह से मुझे हमेशा हैरानी होती थी कि कोई महिला सुपर हीरो क्यों नहीं है। महिलाएं जो लड़ी, जिन्होंने न सिर्फ अपने शब्दों से बल्कि अपनी मुट्ठियों और तलवारों से अपने विश्वास और अपने प्रियजनों के लिए लड़ाइयाँ लड़ी। लेकिन मेरी यह सोच सिर्फ तब तक थी जब तक मैंने खावला बिन्त अल अज़वर की कहानी नहीं सुनी, जो बेहद बहादुर योद्धा थी जो पैगम्बर मुहम्मद सल्ल। के वक़्त के कुछ बाद लड़ी और जियी।

खावला की ज़िन्दगी के बारे में ज़्यादा मौजूद नहीं है, खासतौर पर उनकी शुरूआती ज़िन्दगी और उनके परिवार के बारे में। हमें सिर्फ इतना पता है कि उनकी पैदाइश 7वीं शताब्दी में हुयी और उनका परिवार सबसे पहले मुसलमान होने वाले लोगों में शामिल था। तलवार उठाने से पहले, खावला सेना में नर्स की भूमिका अदा कर रही थी। नर्स और योद्धा होने के साथ साथ, खावला एक कवित्री भी थी और उन्हें इसकी शिक्षा अपने भाई से मिली थी।

अजन की लड़ाई में, राशिदुन आर्मी के कमांडर, खावला के भाई, ज़िर्रार इब्न अज़वर को रोमन ने लड़ाई के दौरान पकड़ लिया था। यही खावला के लड़ाई में शामिल होने का कारण बना। हाथ में तलवार और कन्धों को शाल से ढक कर खावला ने एक योद्धा का रूप बनाया, और जब कैदियों को छुडाने के लिए खालिद बिन वलीद निकले तो उनका पीछा करते करते दुश्मन के खेमे तक पहुँच गयीं। इसके बाद आगे बढ़ कर उन्होंने अकेले ही रोमन सैनिकों पर हमला बोल दिया और इसके बाद बाकि साथी सैनिक भी हमलावर हो गए।

राफे बिन ओमेइरा अल ताई, एक सैनिक जो उस लड़ाई में मौजूद थे, कहते हैं, “वह योद्धा दुश्मन सैनिकों को बिखेरता हुआ उनके बीच खो गया और जब दुबारा नज़र आया तो उसकी तलवार पर सिर्फ खून था”। उन्होंने बताया कि हालाँकि अन्य सैनिकों को उस रहस्यमय योद्धा की पहचान नहीं पता थी लेकिन उन्होंने उसे खालिद माना। इसके बाद, जब खालिद नज़र आये तो बाकि सैनिकों के साथ वे भी हैरान थे।

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