लालू पर सबसे पुराना केस पटना विश्वविद्यालय से है। अमित शाह और मोदी को शुरुआत वहाँ से करनी चाहिये थी। दूसरा जे. पी. के सम्पूर्ण क्रान्ति आंदोलन से। शाह, मोदी को मीसा कानून नीता आयोग की तरह नए नाम में फिर से लाना चाहिए।
संघ और भाजपा की कारगुजारी में देश की जनता टैक्स चोर है । कालाबाजारी करती है, कालाधन रखती है। भ्रष्टाचारी है, साम्प्रदायिक है, देश द्रोही है। देशभर के महत्वपूर्ण स्टेशनों को बेचना, रेलवे को डीजल बेचने का ठेका अंबानी को देना, कोई भ्रष्टाचार नहीं है ? अभी तो लालू यादव से शुरुआत हुई है, फिर धीरे-धीरे आम आवाम के घर घर तक CBI पहुँचेगी।
लालू यादव के मामले में सिर्फ कानून ही अपना काम नहीं कर रहा, कुछ और लोग भी अपना काम कर रहे हैं। उद्देश्य भी छिपा नहीं है। हिंदी पट्टी में लालू एक ऐसे सशक्त नेता के तौर पर हमेशा रहे, जो भाजपा के लिये चुनौती बन कर रहे। मोदी के अश्वमेध अभियान को बिहार में रोकने में लालू की भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी नीतीश की।
2019 में लालू की भूमिका महत्वपूर्ण रह सकती है। अखिलेश और मायावती को साथ लाने की उनकी कोशिशें असर डाल सकती हैं। मजबूत लालू आगामी आम चुनाव में मोदी के लिये बड़ा खतरा साबित होंगे। तो, लालू को कमजोर करना है। इसके अनेक प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष फायदे हैं। बिहार का यादव वोट बैंक बिखर जाएगा, विपक्ष की एकता में लालू के प्रयास भी कमजोर होंगे। उनकी प्रस्तावित रैली की आक्रामकता पर असर होगा।
जांच की जाए तो पटना की आधी जगमगाती हवेलियां जब्त कर ली जाएंगी। देश के आधे नेता जेल में नजर आएंगे, अगर उनकी संपत्ति की सही और सख्त जांच हो। जाहिर है, इनमें भाजपा के भी अनेक नेता होंगे। लालू दोषी होंगे तो कानून अपना काम करेगा ही, लेकिन जो हो रहा है, यह फेयर गेम नहीं। इसमें राजनीतिक उद्देश्यों और षड्यंत्रों की बू आ रही है और यह देश की राजनीतिक संस्कृति के लिये ठीक नहीं।
इसमें संदेह नहीं कि लालू यादव स्वतंत्रता के बाद बिहार में श्रीकृष्ण सिंह के बाद सबसे बड़े नेता हैं। हालांकि, एक मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें ऐसा नहीं कहा जा सकता। इतिहास उनका अधिक तटस्थ मूल्यांकन करेगा, किन्तु, लगता नहीं कि लालू अभी इतिहास की धूल में मिलने वाले हैं।