EVM से जुड़ा मोदी सरकार का ये फैसला साजिश तो नहीं ?
यूपी चुनाव में ईवीएम से छेड़छाड़ वाली बात की परतें खुल रही हैं. ईवीएम को लेकर पिछले दिनों मोदी सरकार एक फैसला शक पैदा करता है.
उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार आ गई. वो भी एकतरफा. बीजेपी की ऐसी शानदार जीत, विरोधी पार्टियों के गले से नीचे नहीं उतरी. पहले बसपा सुप्रीमो मायावती और फिर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ये बोल दिया कि नतीजे उनकी समझ के परे हैं और ईवीएम में छेड़खानी हुई है. ईवीएम से छेड़छाड़ वाली बात की हवा इतनी जोर से चली की सबको सोचने पर मजबूर कर दिया. नीदरलैंड, आयरलैंड, जर्मनी, इटली और यूएस में तो ईवीएम बैन है. लेकिन, भारत में किसकी सरकार होगी इसका फैसला ईवीएम से ही होता है.
2008 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने माना था कि बूथ के आधार पर हर चुनाव क्षेत्र के परिणाम को बंद किया जा सकता है. चुनाव आयोग ने 2008 में EVM मशीनों के मतों को मिलाने के लिए प्रस्ताव भेजा था जिसे लॉ मिनिस्ट्री ने अपनी सहमति जताई थी. लेकिन 2017 में ही राजनाथ सिहं की अगवुाई में मंत्रियों के एक समूह ने इस प्रस्ताव को निरस्त कर दिया. कहा गया कि यह भी कहा गया कि बूथ वाइज़ मिले मतों के आधार पर उम्मीदवार अपने क्षेत्रों में और कड़ी मेहनत कर सके जिससे कि वो उनका समर्थन हासिल कर सके.
अब सवाल उठता है कि बूथ वार या कहें ईवीएम वार आने वाले नतीजों का विश्लेषण बीजेपी ने अपनी जीत को पक्का करने के लिए तो नहीं किया ? क्योंकि इससे यह साबित हो गया कि ईवीएम मशीनों के उपयोग से आपका गोपनीय नहीं रह गया. आपने किसे वोट डाला है, नेताओं को पता होता है. आम तौर पर मतदान को गोपनीय बताया जाता है, लेकिन यह उतना सीक्रेट है नहीं, जितना कि आप समझते हैं. खुद देख लीजिए कैसे…
एक वॉर्ड और एक EVM
चुनावों के दौरान क्षेत्र को बेहतर प्रबंधन के लिए वॉर्ड में बांटा जाता है. हर EVM में अधिकतम 3840 वोटों का रिकॉर्ड होता है. हर मशीन का नतीजा अलग से उपलब्ध रहता है…
इसका मतलब यह है कि हर राजनीतिक दल को पता रहता कि हर पोलिंग बूथ में उनके पक्ष और खिलाफ में कितने वोट डले.
किसे दिया वोट?
क्योंकि पोलिंग बूथ स्थानीय आबादी की नुमाइंदगी करता है, ऐसे में यह पता लगाना ज़्यादा मुश्किल नहीं कि किस इलाके में किस पार्टी को वोट दिया.
बूथ लेवल पर आबादी का मिश्रण कुछ ऐसा होता है कि राजनीति क दल खुद को वोट देने वाली जाति या समुदाय का अंदाज़ा भी लगा सकते हैं.
कई बार वोटरों को धमकाया भी जाता है…
फिल्मों में आप लोगों ने देखा होगा कि वोटिंग के दौरान लोग खड़े रहते हैं और एक जीप आती है. जिसमें से लाठी डंडों के साथ लोग निकलते हैं और लोगों को धमकाकर वोट उनके नेता वो वोट देने के लिए धमकाते हैं. वैसे ही असल समाज में भी होता है. NCP के अजित पवार ने बारामती के मतदाताओं को धमकी दी कि अगर उन्होंने तत्कालीन मौजूदा सांसद सुप्रिया सुले को वोट नहीं दिया, तो उनका पानी बंद कर दिया जाएगा. किस जाति-समुदाय ने उनकी तरफ वोट डाल और किसने विरोध में… नता बूथ लेवल के चुनावी नतीजों को खंगालकर पता कर लेते हैं. इससे आगे भी जातिगत राजनीति करने को बल मिलता है और विकास का मुद्दा पीछे छूट जाता है.
क्या कोई हल है?
जी हां. सरकार, दो में से एक कदम पर आगे बढ़ सकती है.
पहला- विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र की सभी EVM में वोट की गिनती के बाद ही नतीजों का ऐलान किया जाए.
दूसरा- मतगणना के वक़्त ही अलग-अलग बूथ, वॉर्ड और इलाकों से आईं EVM को मिला दिया जाए. इसमें कोई दो राय नहीं कि मतपत्रों की तुलना में EVM ज़्यादा बेहतर विकल्प है. लेकिन अगर उससे होने वाली वोटिंग को फुलप्रूफ बना दिया जाए, तो और अच्छा रहेगा
समाधान के करीब?
केंद्र ने माना है कि हर चुनावी क्षेत्र में अलग-अलग जगहों से आने वाली EVM मशीनों के मतों को मिलाया जाना चाहिए. 2014 में सुप्रीम कोर्ट में मतों को मिलाने को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई फिर 2017 में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया. राजनाथ सिहं की अगवुाई में मंत्रियों के एक समूह ने इस प्रस्ताव को निरस्त कर दिया.
विरोधी पार्टियां चाहती है कि ईवीएम के कार्यप्रणाली को बदला जाए. लेकिन राजनाथ और उनके मंत्री ये नहीं चाहते हैं. सवाल ये भी है 1998 से चल रही ईवीएम मशीनों से रही विरोधी पार्टियों की भी सरकार बनी है तो अब विरोध क्यों किया जा रहा है.
(न्यूजफ्लिक्स @newsflickshindi तस्वीरे और खबर आई चौक से साभार)
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