जिव हात्या के विरोधी अनपढ़, जाहिल, गंवार, संघी, मुसंघी, नास्तिको सुनो….

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हर साल बकरीद यानी ईद-उल-अजहा पर उन लोगो का जिव हात्या पर प्रेम जागरुक होता है जो बिना जिव की हात्या किये 5 मिनिट भी जीवित नहीं रह सकते. यह बात वह अच्छी तरह जानते है, जिव ह्त्या विरोधी लोग अनपढ़, गंवार, जाहिल नहीं है. इनका मकसद सिर्फ और सिर्फ इस्लाम का विरोध करना है और कुछ नहीं. लेकिन धन्यवाद इस्लाम विरोधियों का. आपके विरोध के कारण हर रोज हजारो लोग इस्लाम का अध्ययन कर के इस्लाम कुबूल कर रहे है.

सुनो… ऐसे तर्क जो छोटे बच्चे के भी समझ में आ जाए.
मुसलमान कभी शेर, बाघ, चिता, हाथी, चूहा बिल्ली, कुत्ता जैसे जानवरों की कुर्बानी नहीं देते लेकिन यह प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर है. बिल्ली, चूहे और कुत्ते एक वक्त में लगभग 20 से 30 बच्चे देते है. इनको इंसान नहीं खाते तो इनकी संख्या इतनी कम है की कहीं-कहीं देखने को मिलते है. बकरी, भैंस जैसे जानवर को इंसान खाते है, दुनिया के करोडो इंसान खाते है लेकिन यह हर जगह भारी संख्या में दिखाई देते है जबकि यह एक या डॉ ही बच्चे देते है.
रही बात जिव हात्या की, तो इस धरती पर एक भी इंसान 5 मिनिट तक भी बिना जिव हात्या के जिन्दा नहीं रह सकता. इंसान जानवर और पशुओं से भी ज्यादा मासूम जानवरों की हात्या करके ही ज़िंदा रह सकता है.
आईये देखते है वह कैसे?


उदाहरण : जब कोई आदमी गूंगे और बहरे की हात्य करता है और उसका केस कोर्ट में चलता हो तो गूंगे बहरे के नातेदार, वकील और समाज यही कहेगा की “जज साहब इसने एक मासूम की हात्या की है, जो सुन नहीं सकता था जो बोल नहीं सकता था आम आदमी से डॉ सेन्स कम थे इसको आम आदमी की हात्या से ज्यादा कड़ी सजा दी जाए” यही बात कम उम्र के लोग के प्रति समाज कहता है. सामाजिक मान्यता है की इंसान में जितने सेन्स कम हो वह उतना मासूम और बेगुनाह होता है. तो मेरी उन जिव हात्या विरोधी पढ़े-लिखे गंवारो को सलाह है की फल, फूल, पेड़, पौधे सब्जियां जानवर और पशुओं से ज्यादा मासूम होते है. जानवर तो सुन सकते है, भाग सकते है, इंसानों पर प्रहार कर सकते है लेकिन सब्जियां फल-फूल में कई सेन्स कम होते है. मतलब जानवर और पशुओं से कई ज्यादा मासूम होते है. और उनमे भी इंसानों की तरह जान होती है. शाकाहार तुम्हे किसी तरह की तकलीफ नहीं देता, बेचारा दुनिया में सबसे ज्यादा मासूम होता है. आप फल, फूल, पेड़, पौधे. सब्जियां खाना छोड़ डॉ फिर हम पशुओं को खाना छोड़ने की सोचेंगे.

और एक ख़ास बात यह है की. फल, फूल, पेड़, पौधे और हरी सब्जियों से ज्यादा मासूम तो वह चीज है जिसे तुम सांस लेने और सांस छोड़ने में ही लाखो जीवो की हात्या कर देते हो. इंसान के सांस लेने में कई लाख जीवो की हात्या होती है आप सांस लेना छोड़ डॉ फिर हम पशुओं की हात्या के बारे में सोचेंगे.

जब तुम लोग जमीन पर चलते हो चिंटी, कीड़े मकौड़े जो जानवरों से कई ज्यादा मासूम होते है उनकी हात्या करते हो. तुम जमीन पर चलना छोड़ डॉ फिर हम जानवरों की हात्या के बारे में सोचेंगे. ऐसे कई उदाहरण है. अगर इंसान यह ठान ले की वह जिव हात्या नहीं करेगा तो वह 2 मिनिट भी ज़िंदा नहीं रह सकेगा.

इंसानों को इंसानियत से समझने वाली बात यह है की, अल्लाह ने यह दुनिया इंसानों के लिए बनाई है. इंसान निसर्ग की लाखो-करोडो वस्तुओं का इस्तेमाल करता है. जैसे सूरज की रौशनी, बारिश, समुन्दर, नाहर का पानी, हवा, दिन, रात इन सब चीजो का फ़ोकट इस्तेमाल करता है. बिल भी नहीं देता. तो पढ़े-लिखे अनपढ़ गंवारो आप ऐसी सारी चीजे खाना छोड़ डॉ जिसमे जान होती है. मट्टी-पत्थर खाना शुरू कर दो, फिर जिव हात्या पर सवाल उठाओ आपकी बात करोडो मांसाहारी तब स्वीकार करेंगे. तबतक के लिए भारत में हो रहे अन्याय, अत्याचार, हात्या, बलात्कार, लूट पर आवाज उठाओ जो इंसानियत के लिए सबसे ज्यादा जरुरी है. उसके बात जिव हात्या, जिव हात्या चिल्लाना
अहेमद कुरैशी
प्रदेशाध्यक्ष, रिहाई मंच, महाराष्ट्र

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