सेनेटरी पैड्स हाइजीन का नहीं मुनाफे का मामला है इसके साथ बीमारियां मुफ्त मिलेंगी

सोशल एक्टिविस्ट आगरा निवासी विकास राठौर ने सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा की, #सेनेटरी_पैड्स_हाइजीन_का_नहीं_मुनाफे_का_मामला_है_इसके_साथ_बीमारियां_मुफ्त_मिलेंगी।

बाजार में बिकने वाले ब्रांडेड सैनेटरी नैपकिन में सुपर एब्‍जॉर्बेंट पॉलीमर्स (जेल), ब्‍लीच किया हुआ सेलुलोज वूड पल्‍प, सिलिकॉन पेपर, प्‍लास्टिक, डियो डेरेंट आदि का इस्‍तेमाल होता है। नैपकिन में रूई के अलावा रेयॉन को भी उपयोग में लाया जाता है। इससे सोखने की अवधि बढ़ती है। रेयॉन में डायोक्सिन होता है। वहीं कपास की खेती के दौरान उस पर कई पेस्‍टी साइड छिड़के जाते हैं। इनमें से कई केमिकल रूई पर रह जाता है। इससे थायरॉयड, डायबिटीज, अवसाद और निसंतानता की समस्‍या हो सकती है।

सैनेटरी नैपकिन में डायोक्सिन का इस्‍तेमाल किया जाता है। डायोक्सिन को नैपकिन को सफेद रखने के लिए काम में लिया जाता है। हालांकि इसकी मात्रा कम होती है लेकिन फिर भी नुकसान पहुंचाता है। इसके चलते ओवेरियन कैंसर, हार्मोन डिसफंक्‍शन, डायबिटीज और थायरॉयड की समस्‍या हो सकती है। घर का साफ सूती कपड़ा सबसे बेहतर है,वैसे भी जिन महिलाओं को सामान्य मासिक धर्म आता है उनके लिए शुरुआती 2 दिन में पैड काम नहीं कर पाता है।

हाइजीन के नाम पर सेनेटरी पैड्स का शिगूफा बाजार की देन है क्योंकि इस क्षेत्र में कम्पनियों को एक बड़ा मुनाफा दिख रहा है। अभी इंडिया की सिर्फ 12 फिसद महिलाएं पैड यूज करती हैं,तब इसका बाज़ार 4500 करोड़ का है।कम्पनियों को उम्मीद है कि अगले 10 साल में ये मार्केट बड़ कर 25000 करोड़ का हो सकता है।

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